पराये शहर में अकेली लड़की

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पराये शहर में किराये का कमरा ढ़ूढ़ने निकली किसी नौजवान लड़की की समस्याएं वास्तव में काफी पेचीदा होती हैं। वह अनेक सवालों के चक्रव्यूह में उलझती है -’मकान मालिक पता नहीं कैसा है ? मुहल्ले के लोग किस मानसिकता के है ? क्या यह मकान उसके लिए किराये पर लेना निरापद होगा ?’ आदि।

महानगरों में तों यह समस्या और भी पेचीदा है। ऊंची शिक्षा या नौकरी के सिलसिले में अक्सर नौजवान लड़कियों को पराये शहरों में रहना पड़ता है। गांवों का माहौल कुछ अलग किस्म का है और वहां लोगों में अपनत्व की भावना होती है, जिस कारण लड़की के लिए कोई विशेष कठिनाई नहीं होती। लेकिन महानगरों में गांवों के लोगों जैसी आत्मीयता और माहौल कहां ?

कु० उमा शर्मा की प्रथम नियुक्ति, बतौर क्लर्क , घर से दूर एक बड़े नगर में हुई। कई समस्याओं से दो चार होने पर उसे एक उपयुक्त मकान मिल तो गया, लेकिन कुछ ही दिनों में वह चर्चाओं में आ गयी। मुहल्ले की औरतों को बात करने का एक नया विषय मिल गया।

’बड़ी अकड़ वाली है, हमेशा अपनी ही धुन में रहती है।’

’चाल – ढ़ाल से तो किसी शरीफ घराने की नहीं लगती।’

’कल बाजार में एक आदमी के साथ हंस-हंस कर बतिया रही थी। जरूर कोई चक्कर चल रहा होगा।’ 

ऐसी चर्चाएं हमारे समाज की बीमार मानसिकता का सबूत होने के साथ साथ इस कटु सत्य की भी प्रतीक हैं कि अकेली लड़की के लिए किसी पराये शहर में रहना जंजाल से कम नहीं। अगर वह सामाजिक होना चाहे, किसी से मेल जोल बढ़ाना चाहे तो उसे स्वच्छन्द करार दे दिया जाता है और यदि वह स्वयं में ही सिमटी रहे तो उसे घमण्डी का खिताब मिल जाता है। दोनों ही स्थितियां उसके लिए दुविधापूर्ण हैं। इसके अलावा उसे कई और समस्याओं से गुजरना पड़ता है। अस्वस्थ होने पर स्वयं ही चिकित्सक के पास भागना पड़ता है। वह किसी की सहायता ले तो संदेह के घेरे में आ जाती है।

ऐसी परिस्थितियों में पराये शहर में आई लड़की के लिए आवश्यक है कि वह अपने कार्यालय की  किसी महिला सहयोगी को विश्वास में लेकर कोई उपयुक्त मकान तलाशे। इसके अतिरिक्त वह अपनी प्रकृति से मेल खाती किसी अन्य लड़की या महिला को भी ’रूममेट’ बना सकती है। इससे जहां उसका अकेलापन दूर होगा, वहीं सुरक्षा की भावना भी बढ़ेगी। पराये शहर में आई लड़की को ऐसे मुहल्ले में कमरा किराये पर लेने की कोशिश करनी चाहिए, जहां उसके गांव का या फिर जान पहचान से संबंधित कोई परिवार बसा हो। नगरों में कार्यरत महिला – मंडलों, महिला – क्लबों और सामाजिक संस्थाओं को भी चाहिए कि वे पढ़ाई या नौकरी के सिलसिले में घर से दूर, उनके शहर में आई महिला को उपयुक्त मकान तलाशने में उसकी मदद करें। आवश्यकता इस बात की भी है कि नगरों में जो आवासीय कालोनियों का निर्माण किया जाता है, उनमें कामकाजी, अकेली महिलाओं के लिए अलग से अपार्टमेंट्स हों। पराये शहर में एक अकेली लड़की के लिए कितना अच्छा होगा ऐसा बसेरा।

                                                        परमजीत कौर बेदी


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