बच्चा ज्यों ज्यों बड़ा होता है उसमें संस्कारों की प्रबलता जड़ होती जाती है, आपने जो उसे बचपन में सिखा दिया, जो दिशा उसे दिखा दी वह बेहिचक उसपे बढ़ता जाता है। बड़ा होने के बाद आप कहें कि मेरा बेटा या बेटी तो घर का काम छूती तक नहीं या इसमें रूचि नहीं लेती तो यह बिल्कुल फिजूल है। यहां अपवाद छोड़ दें तो सामान्यतः हर संस्कार आपका अपना दिया होता है।

हर घर में कुछ न कुछ पेड़ पौधे लगे ही रहते हैं। न हों तो तुलसी तो हर घर में लगी ही रहती है। बच्चे पानी से खेलने में भरपूर आनंद लेते हैं, आप उन्हें पौधों में पानी डालने के लिए कहिए। वे इससे बेहद आनंदित होंगे और आपका काम भी हो जाएगा।

आपकी बेटी हो या बेटा उसे छोटे आटे की लोइयां बेलने दें। उसके सामने ही उन छोटे छोटे बिगड़े नमूनों को सेंकिये। चाव से खाइये, देखिए आपकी बच्ची या बच्चे के उत्साह में कितनी वृद्धि होती है और वही काम फिर करने के हेतु तत्पर होता है या नहीं।

यदि उनकी पहुंच पर हो तो उनसे गिलास कटोरी जमाने को कहिए, उसकी तारीफ कीजिए। थोड़ा काम तो बिगड़ेगा भी, पर यह सुधरते भी देर नहीं लगेगी। आपके छोटे छोटे काम इतनी आसानी से व जल्दी हो जाएंगे कि बस आप देखती रह जाएंगी।

बच्चों को सिखाइये कि वह किसी दूसरे की वस्तु को न छुएं, किसी से कुछ मांगे नहीं, इसके लिए उसे घर से पेट भरकर खिलाकर ले जाएं। उसे जूते चप्पलों को ढ़ंग से जमाना बताइए। सौंफ – सुपारी मेहमानों को देने दीजिए। उसे अपनी किताबों को जमाने दीजिए।

यदि आपका बच्चा फूल तोड़कर फेंकता है तो उस पर यह जिम्मेदारी डाल दीजिये कि देखो ध्यान देना कोई अपना फूल तोड़कर न ले जाए। जब वह यह जिम्मेदारी वहन करेगा तो खुद फूल तोड़ ही नहीं सकेगा। अपने फर्नीचर तथा वाहन को पोंछने की जिम्मेदारी दे दीजिए। छोटा है तो वह अच्छा तो नहीं पोंछ सकेगा पर इससे वह आत्मनिर्भर बनेगा।

उसकी आत्मनिर्भरता आपके काम को तो कम करेगी ही, उसमें कुछ कर सकने का आत्मविश्वास भी पैदा करेगी। उसमें पढ़ाई के साथ साथ आपका काम संभालने की आदत भी पड़ेगी। अक्सर ही लोग यह कहते हैं, “अरे अभी तो वह पढ़ रहा /रही है काम कैसे करेगा ?“ लेकिन शायद वह भूलते हैं कि पढ़ाई के बाद मजबूत हुई शाखा कहीं झुक नहीं सकेगी।

नौकरी के दौरान कहीं बाहर दो साल रहना उनके लिए जान का झंझाल बन जाता है क्योंकि वह कुछ कर ही नहीं सकते हमेशा दूसरों पर आश्रित जो रहे हैं।ज्योत्सना आनन्द