क्या बारातियों का अत्याचार सहना लड़कीवालों की नियती है ?

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प्रायः देखा गया है कि बाराती के मन में यह बात जरूर रहती है कि वह चाहे जो भी करे, लड़कीवाले बुरा नहीं मानेंगे। चाहे लव मेरिज हो या अरेंज मैरिज उनकी हर डिमांड पूरी होगी। बारातियों की यही मानसिकता उनसे मनमानी कराती है। वे नहीं सोचते कि वे एक नया संबंध स्थापित करने जा रहे हैं और उनका पूरा दायित्व है कि अगले को, किसी तरह का कष्ट दिए बिना शादी हो जाए। बाराती यह नहीं सोचते कि इससे संबंध जुड़ने से पहले ही उसमें कटुता आ जाती है।

लड़कीवाले अपनी लड़की के लिए शादी के दो – तीन साल पहले से ही लड़का खोजना शुरू कर देते हैं। लड़के के पक्ष से जो डिमांड की जाती है उसका इंतजाम करते हैं, जिसमें उन्हें काफी परेशानियां उठानी पड़ती हैं। फिर भी लड़केवाले उन्हें परेशान करने से बाज नहीं आते।

उस दिन लता की शादी थी। बारात भोपाल से आ रही थी। लड़कीवालों ने उनके लिए लखनऊ में नाश्ता और कानपुर में भोजन की व्यवस्था कर रखी थी। लेकिन तीन बजे रात को ट्रेन कानपुर पहुंची थी। नब्बे प्रतिशत बाराती सो चुके थे। इस कारण उनमें से अधिकांश ने न रात का खाना खाया और न नाश्ता लिया। ठीक इसी तरह वे लौटते वक्त भी रास्ते में कभी चाय, कभी ठण्डा आदि की फरमाइशों के कारण स्टेशन पर लेट पहुंचे। उस समय ट्रेन चलने में मात्र पांच मिनट बाकी थे। इतने समय में करीब डेढ़ सौ बारातियों को, सामान के साथ, चढ़ाना काफी मुश्किल था। लेकिन लड़कीवालों  ने वहां के ए एस एम तथा ड्राइवर से आरजू – मिन्नत कर ट्रेन को रूकवाया और अपने सर पर सामान ढो – ढोकर ट्रेन में जल्दी – जल्दी रखा, तब कहीं ट्रेन में सब लोग चढ़ पाए।

आशा की शादी में तो काफी परेशानी हुई। बारात बस से जा रह थी। तभी पास से गुजर रहे एक ट्रैक्टर पर बारातियों में से किसी ने केले का छिलका फेंक दिया। फिर तो वह हुआ, जिसकी कलपना भी किसी ने न की होगी। ट्रैक्टर के मालिक ने ट्रैक्टर का हुक बस में  फंसा दिया और बारातियों से भरी उस पूरी बस को खींच कर ले चला एक ऐसे खतरनाक इलाके की ओर, जहां दिन रात बंदूकों की धांय धांय के कारण दहशत छायी रहती है। कुछ भले आदमियों  ने ट्रैक्टर मालिक से माफी मांगते हुए कहा कि अगर आपके यहां यह हाल हुआ होता, तो आप क्या करते ! किंतु काफी मिन्नत आरजू के बावजूद वह बस को छोड़ने के लिए तैयार नहीं था। अंत में बस में बैठे सभी बारातियों ने एक एक कर उससे माफी मांगी, तब जाकर उससे छुटकारा मिला।

सुधा के विवाह में मंडप के नीचे बैठकर बारातियों  को भोजन करना था। मंडप तले पहुंचकर लड़केवालों ने कन्या पक्ष से कहा, हमारे परिवार में तभी शादी होती है जब समधिन खुद पत्तल परोसती है। इसे लड़कीवालों ने अपनी बेइज्जती समझी और वहां अच्छा खासा हंगामा खड़ा हो गया।

बारातियों को चाहिए कि वे अपनी गैर मुनासिब भावनाओं पर नियंत्रण रखें। इससे दोनों पक्ष की मर्यादा बढ़ेगी। साथ ही संबंध भी स्थायी और मधुर बनेंगे।


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