यात्रा के समय मोशन सिकनेस क्यों

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मोशन का अर्थ गति या चलना फिरना है और सिकनेस का अर्थ बीमारी। यात्रा शुरू करते समय या यात्रा के समय यदि किसी व्यक्ति को घबराहट हो, जी मिचलाये या उलटी होने लगे, पसीना आ जाए, चक्कर आने लगे तो उसे मोशन सिकनेस का मरीज समझना चाहिए। यह बीमारी दो प्रकार की होती है।

पहली – एक्यूट या अचानक शुरू होने वाली। इस अवस्था में मरीज यदि किसी पहाड़ी या घुमावदार रास्ते पर चलता है या पहली बार हवाई जहाज या पानी के जहाज में यात्रा करता है तो उसे यह शिकायत हो सकता है।

दूसरी – क्राॅनिक यानि कुछ व्यक्ति जब यात्रा करते हैं चाहे बस या कार में, रेल या जहाज में, उन्हें हमेशा उपरोक्त शिकायत हो जाती है।
इस बीमारी के लक्षण जितनी जल्दी शुरू होते हैं उतनी ही जल्दी समाप्त हो जाते हैं। कहने का तात्पर्य यह कि बीमारी अधिक समय तक नहीं रहती और इसके होने पर भी शरीर में इसके दुष्प्रभाव बाकी नहीं रहते जैसा कि शरीर दूसरी बीमारियों में होता है।
किसी भी वाहन के चलते ही व्यक्ति को ऐसा महसूस होने लगता है कि वह बगल में बैठे यात्री या परिचित से कोई बात चीत नहीं कर पाएगा। उसे पसीना आने लगता है और जी मिचलाना शुरू हो जाता है। कुछ देर बाद उल्टियां शुरू हो जाती हैं जो बाद में बंद भी हो जाती हैं, किन्तु जी में भारीपन बना रहता है जो पूरी यात्रा के दौरान बना रहता है।

मोशन सिकनेस का कारण

यह बीमारी पुश्तैनी या पारिवारिक भी होती है। कान के भीतरी भाग में एक ग्रन्थी होती है जिसके बार बार हिलने डुलने की वजह से यह बीमारी होती है। 2 वर्ष से कम के बच्चों में ग्रंथी का विकास न होने की वजह से यह बीमारी नहीं होती। अधिकांशतः बीमारी 2 से 12 वर्ष के बीच के बच्चों में या महिलाओं में ही होती है पुरूषों में यह बीमारी कम लोगों को होती है। जो पुरूष पहाड़ों, अंधेरी गुफाओं से डरते हैं उन्हीं को यह बीमारी होती है। बच्चों और महिलाओं में बीमारी अधिक होने का एक कारण हारमोनल होता है जो उन्हें आरामप्रिय व डरपोक बना देता है। दूसरा कारण साइकलाॅजी होती है। महिलाएं व बच्चे इस बात से भयभीत रहते हैं कि यात्रा में कोई तकलीफ या कष्ट न हो जाए।
पुरूषों में मेल हारमोन की वजह से कठोरता एवं कष्ट सहने की क्षमता अधिक होने के कारण ही यह बीमारी कम होती है। कभी कभी कुछ वर्षों या कई यात्राओं के बाद बीमारी अपने आप ठीक भी हो जाती है।

बीमारी से नुकसान
इस बीमारी से शारीरिक रूप से कोई हानि नहीं होती, किन्तु मानसिक रूप से रोगी बहुत परेशान रहता है। घबड़ाहट, चक्कर आना व जी मिचलाना इसी वजह से ज्यादा होता है। आस पास बैठे यात्री भी सहयात्री के बार बार उलटी आदि करने से हंस बोल नहीं पाते और सभी यात्रियों की यात्रा का मजा किरकिरा हो जाता है। बहुत से यात्री मन ही मन सहयात्री को कोसते हुए यात्रा करते हैं। रोगी के कपड़े खराब होने के साथ साथ दूसरे यात्रियों का सामान भी कभी कभी खराब हो जाता है। जिससे आपस में तू – तू, मैं – मैं भी हो जाती है।

रोग से बचाव कैसे किया जाए
रोगी को अपनी इस बीमारी के बारे में पहले से ही पता रहता है इसलिए यात्रा के पहले उसे बहुत हल्का नाश्ता कर चलना चाहिए। रास्ते में खाने पीने की कोई वस्तु इसतेमाल नहीं करनी चाहिए। उलटी रोकने की गोली खाकर यात्रा करने से बीमारी से बचा जा सकता है। यात्रा के समय कोई पुस्तक पढ़ने या आपस में किसी सहयात्री से बात चीत करके भी इस बीमारी से बचा जा सकता है।

एक सुझाव
यदि आप यात्रा पर हैं और ऐसी परिस्थिति में आपका कोई सहयात्री है तो बिना नाक भौं सिकोड़े उस सहयात्री की मदद करें और मूड आफ करने के बजाए मुस्कराते हुए यात्रा करें।


                                            डाॅ. आर के. चैहान


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