जयति भट्टाचार्य।
बिरयानी के प्रेमियों कल बिरयानी अवश्य खाएं। एक चावल की कंपनी ने कल यानि 3 जुलाई 2022 को पहला विश्व बिरयानी दिवस मनाने की घोषणा की है। तो बिरयानी लवर्स इस दिन को सफल बनाने में अवश्य जुट जाएं।
भारत में बिरयानी को लोकप्रिय बनाने का श्रेय मुगलों को जाता है। लेकिन मुगल इसे लाए कहां से ? भारत में इसे लाए तो मुगल ही लेकिन इसकी कई कहानियां हैं।

वह बाद में देखते हैं। चलिए पहले जानते हैं कि बिरयानी आया कहां से ? बिरयानी मूलतः ईरान में बनता था। बिरयानी शब्द ईरानी शब्द “बिरयान” और “बिरिंज” को मिलाकर बना है। ईरानी भाषा में “बिरयान” का अर्थ है पकाने से पहले भूनना और “बिरिंज” यानि चावल। अनेक इतिहासकार यह मानते हैं कि बिरयानी आया तो ईरान से भारत मुगलों द्वारा परंतु इसका विकास भारत में मुगलों की रसोई में हुआ।

एक कहानी के अनुसार एक बार शाहजहां की बेगम मुमताज, सेना के बैरक का मुआयना कर रही थीं। उन्हें मुगल सैनिक कुपोषित लगे। उन्होंने रसोइए से चावल और मीट मिलाकर एक व्यंजन बनाने को कहा जिससे सैनिकों को संतुलित आहार मिले। यह व्यंजन मसालों और केसर के साथ लकड़ी की आग पर बनाया जाता था।

एक अन्य कथा के अनुसार बिरयानी तुर्क – मंगोल तैमूर के साथ 1398 में भारत आया। हैदराबाद के निजाम और लखनऊ के नवाब भी बिरयानी के बेहद शौकीन थे। पारंपरिक रूप में बिरयानी कोयले पर मिट्टी की हांडी में पकाया जाता था।

आज भारत में अनेक तरह की बिरयानी का प्रचलन है। मुगलई बिरयानी, लखनवी बिरयानी, बंबई का बिरयानी, बंगलूरू की बिरयानी, हैदराबादी बिरयानी, भोपाली बिरयानी, कोलकाता की बिरयानी इत्यादि।
कोलकाता की बिरयानी में आलू अवश्य डाला जाता है। इसकी एक रोचक कथा है। लखनऊ के नवाब वाजिद अली शाह को जब अंग्रेज कैद करके कोलकाता लाए थे तो नवाब के सामने एक समस्या खड़ी हुई। कैद में भी नवाब की आदतें तो आखिर नवाब की ही रहेगी। उनकी हैसियत रोज मांस खाने की नहीं रह गई थी। परंतु बिरयानी तो चाहिए ही। वहां के रसोइयों ने दिमाग दौड़ाया और आलू को सुनहरा तलकर मांस की जगह चावल में डालकर बिरयानी बनाने लगे और नवाब रोज वही बिरयानी शौक से खाते थे। आज कोलकाता की मटन बिरयानी हो या चिकेन बिरयानी आलू जरूर पड़ता है। तो यह रहा ईरान से आपकी रसोई तक बिरयानी का सफर।