जिस तरह होली के साथ रंग, गुलाल, पिचकारी जुड़ी है उसी तरह से होली की मिठाइयां भी जुड़ी हैं। होली का अभिन्न अंग है गुझिया। होली में कई प्रकार की मिठाइयां बनती हैं पर गुझिया की बात ही कुछ अलग है। गुझिया के बिना होली पूरी होती ही नहीं है विशेषकर उत्तर प्रदेश में।
वैसे गुझिया तो कई प्रदेशों में बनती हैं, पर अलग अलग नामों से जानी जाती है। गुझिया उत्तर प्रदेश, राजस्थान, गुजरात, बिहार में होली और दिवाली के अवसर पर बनाई जाती है। इसके अलावा भी यह कई प्रदेशों में बनता है और अलग अलग नामों से जाना जाता है। उत्तर प्रदेश, राजस्थान में इसे गुझिया कहते हैं। बिहार में इसे पेड़ाकिया कहते हैं और यह सूखी ही होती है। छठ पूजा के अवसर पर भी इसे बनाया जाता है। गुजरात में इसे घुघरा कहते हैं।
महाराष्ट्र में करंजी कहते हैं और यह दिवाली पर बनता है। ओडिशा में भी इसे करंजी कहते हैं। तामिल नाडू में सोमास, तेलेंगाना में गरीजालू , आंध्र प्रदेश में कज्जीकाया, कर्नाटक में कर्जीकाई। गोवा में भी इसी तरह का एक व्यंजन बनता है। हिन्दू गणेश चतुर्थी पर बनाते हैं और क्रिशचन क्रिसमस पर, इसे नेवरी या न्यूरी के नाम से जाना जाता है।
भारत में यह सूजी, मैदा,मेवा और खोवा से बनता है और इसे घी में तला जाता है। गुझिया का पुराना उल्लेख 13 वीं सदी को जाता है। तब गुड़ और शहद के मिश्रण को गेहूं के आटे में लपेटकर सूर्य की रोशनी में सुखाया जाता था।
गुझिया हो या पेड़ाकिया हो बनाने की प्रक्रिया समोसा जैसा है। हां गुझिया की शक्ल एम्पांडा जैसी होती है। एमपांडा एक प्रकार की पेस्ट्री है जो बेक की जाती है या तली जाती है। इसमें भरावन रहता है और देखने में बिल्कुल गुझिया जैसा। यह दक्षिण यूरोप, लैटिन अमेरिका और फिलीपींस में लोकप्रिय है। भारत में गुझिया तीज के अवसर पर भी कहीं कहीं बनती है परंतु होली और गुझिया एक दूसरे के बिना अधूरा है। इस होली पर गुझिया खाते वक्त थोड़ा सा उसके बारे में भी सोचिएगा।